2 रुपए के लिए 20 साल लड़ाई

दो दशक तक सिस्टम से लड़ता रहा यह शख्स, अब सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी
संकल्प दूत। 9 दिसंबर, 2003 को बेचा गया एक स्टांप पेपर अमन भाटिया नाम के वेंडर के लिए जी का जंजाल बन गया. आरोप लगा कि उन्होंने 2 रुपये ज्यादा मांगे थे. दो दशक बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है.
₹2 में आज क्या मिलता है! लेकिन इन्हीं दो रुपयों की वजह से एक शख्स 20 साल तक अदालतों के चक्कर लगाता रहा. उनका नाम है, अमन भाटिया. वह दिल्ली के जनकपुरी में स्टांप वेंडर थे. साल था 2003. तारीख 9 दिसंबर. एक ग्राहक ₹10 का स्टांप पेपर खरीदने पहुंचा. आरोप लगा कि अमन ने ₹12 मांगे, यानी ₹2 ज्यादा. ग्राहक ने इसे रिश्वत मानते हुए एंटी करप्शन ब्रांच में शिकायत कर दी. जाल बिछा अमन को रंगे हाथों पकड़ने की कोशिश हुई. फिर मामला कोर्ट पहुंचा. निचली अदालत ने 2013 में उसे एक साल की सजा सुना दी. हाईकोर्ट ने 2014 में इस फैसले को बरकरार रखा, लेकिन अमन हार नहीं माने.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सालों तक केस चला. शुक्रवार को फैसला आया. कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार साबित नहीं हुआ. ना तो रिश्वत मांगने के ठोस सबूत हैं, और ना ही लेने के. सिर्फ ₹2 ज्यादा मांगने से यह नहीं माना जा सकता कि आरोपी ने जानबूझकर घूस मांगी.