फर्जी खबरों ने किया सेना का वक्त बर्बाद, मीडिया को सेना प्रमुख की चेतावनी

ऑपरेशन सिंदूर: सूचना युद्ध में उलझा 15% समय
नई दिल्ली: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने खुलासा किया है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की सेना को लगभग 15 प्रतिशत समय फर्जी खबरों का खंडन करने में गंवाना पड़ा। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर संकेत है कि भारत को अब सूचना युद्ध (Information Warfare) से निपटने के लिए एक स्वतंत्र शाखा की आवश्यकता है।
‘सच बोलने में समय लगता है, लेकिन वही टिकता है’
सिंगापुर में आयोजित शांगरी-ला डायलॉग में बोलते हुए जनरल चौहान ने बताया कि भारत की संचार रणनीति पूरी तरह तथ्य-आधारित रही। यही कारण रहा कि जवाब देने में थोड़ा विलंब हुआ, लेकिन यह रणनीति विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ज़रूरी थी। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन की शुरुआत में दो महिला अधिकारी मीडिया से संवाद कर रही थीं क्योंकि वरिष्ठ अधिकारी मोर्चे पर तैनात थे।
पाकिस्तान और चीन की मिलीभगत के सबूत नदारद
जनरल चौहान ने कहा कि यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन की कमर्शियल सैटेलाइट सेवाओं का उपयोग किया हो सकता है, लेकिन इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले कि उसे रियल-टाइम टारगेटिंग में कोई मदद मिली। इसके विपरीत भारत ने आकाश मिसाइल सिस्टम जैसे स्वदेशी हथियारों का प्रयोग कर निर्णायक बढ़त हासिल की।
मल्टी-डोमेन युद्ध की मिसाल बना ऑपरेशन
भारत ने इस अभियान में देशी-विदेशी रडार सिस्टम को जोड़कर एकीकृत रक्षा प्रणाली तैयार की। जनरल चौहान ने इसे “नॉन-कॉन्टैक्ट, मल्टी-डोमेन” युद्ध बताया जिसमें भूमि, वायु, साइबर और अन्य माध्यमों का इस्तेमाल हुआ। काइनेटिक और नॉन-काइनेटिक हथियारों की एक साथ तैनाती भविष्य के युद्धों की झलक देती है।
आर्थिक बोझ से बचने के लिए तेज़ डिसइंगेजमेंट
सीडीएस ने कहा कि बिना युद्ध के लंबे समय तक सेना की तैनाती देश की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ सकती है। यही कारण है कि भारत सफल ऑपरेशन के बाद जल्द ही सेना को वापस बुला लेता है। उन्होंने कहा, “लंबे युद्ध विकास में बाधा डालते हैं, और दुश्मन इसे भली-भांति जानता है।”
‘कोई युद्ध बिना नुकसान के नहीं होता’
जनरल चौहान ने स्पष्ट किया कि हर युद्ध में कुछ न कुछ नुकसान होता ही है, लेकिन भारत की प्राथमिकता सही प्रतिक्रिया देना रही। उन्होंने बताया कि भारत ने सिर्फ तीन दिन में जवाबी कार्रवाई करके हालात को और बिगड़ने से रोक दिया।
साइबर हमलों की सीमित भूमिका
हालाँकि कुछ डिनायल-ऑफ-सर्विस (DoS) हमले दर्ज किए गए, लेकिन भारत की एयर-गैप्ड सैन्य प्रणालियाँ पूरी तरह सुरक्षित रहीं। आम नागरिकों के लिए कुछ डिजिटल सेवाएं बाधित हुईं, पर सैन्य संचालन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
युद्ध में स्वचालन: नैतिकता के लिए चुनौती
स्वचालन और रोबोटिक्स को लेकर जनरल चौहान ने चेताया कि मानव क्षति कम होने पर युद्ध का खतरा बढ़ सकता है। अगर निर्णय लेने वालों को लगे कि जान का खतरा नहीं है, तो वे आक्रामक निर्णय लेने लगते हैं, जिससे युद्ध की नैतिक सीमाएं धुंधली हो सकती हैं।
परमाणु युद्ध की दिशा तर्कहीन
सीडीएस ने यह भी कहा कि परमाणु टकराव बढ़ाना किसी भी दृष्टि से तार्किक नहीं है। उन्होंने बताया कि भारत ने संकट के समय ऑपरेशनल स्पष्टता और स्वायत्तता बनाए रखी, जिससे बिना उकसावे के ठोस जवाब देना संभव हो सका।
पाकिस्तान से दूरी: सोची-समझी रणनीति
भारत-पाक संबंधों पर जनरल चौहान ने कहा कि भारत की रणनीति दिशाहीन नहीं बल्कि दीर्घकालिक है। 1947 में पाकिस्तान कई क्षेत्रों में भारत से आगे था, लेकिन आज भारत GDP, सामाजिक समरसता और तकनीकी विकास में बहुत आगे निकल चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद जब प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो रणनीतिक दूरी बनाए रखना ही सबसे उपयुक्त जवाब होता है।