जानें कब है जानकी जयंती, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जानकी जयंती पर्व मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि तथा हल के नोक को भी ‘सीता’ कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम ‘सीता’ रखा गया था। अत: इस पर्व को ‘जानकी नवमी’ भी कहते हैं।
इस दिन माता सीता के मंगलमय नाम ‘श्री सीतायै नमः’ और ‘श्रीसीता-रामाय नमः’ का उच्चारण करना लाभदायी रहता है। इस व्रत को विवाहित स्त्रियां अपने पति की आयु के लिए करती हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है।
तिथि-
16 फरवरी 2020 जानकी जंयती 2020
शुभ मुहूर्त-
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – दोपहर 4 बजकर 29 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त – दोपहर 3 बजकर 13 मिनट तक
पूजा विधि
1- जानकी जयंती के दिन साधक को सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2- इसके बाद स्वच्छ भूमि पर गंगा जल छिड़क कर उस पर मंडप बनाएं। यह मंडप 4 ,8 या 16 स्तंभों का होना चाहिए।
3- मंडप के मध्य में सुदंर आसन रखकर भगवान श्री राम और माता सीता की स्थापना करें।
4- पूजा के सोने की, पीतल की, तांबे या मिट्टी में से कोई भी मूर्ति स्थापित कर सकते हैं। लेकिन अगर आप मूर्ति स्थापित नहीं कर सकते तो आप श्री राम और माता सीता की तस्वीर भी स्थापित कर सकते हैं।
5- इसके बाद भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा करें।
6- इसके बाद ऊं श्री जानकी रामाभ्यां नम: मंत्र के द्वारा आसन, पाद्यय अर्घ्य और आचमन कर सकते हैं।
7- इसके बाद भगवान श्री राम को पंचामृत से स्नान कराएं और भगवान श्री राम और माता सीता को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
8- इसके बाद गंध, सिंदूर, चंदन, पुष्प, माला, फल, नैवेद्य,मिष्ठान भी श्री राम और माता को सीता को अर्पित करें।
9- इसके बाद उनकी विधिवत धूप व दीप से पूजा करनी चाहिए और उसके बाद भगवान श्री राम और माता जानकी कथा सुननी चाहिए।
10- कथा सुनने के बाद भगवान श्री राम और माता सीता को मिठाई का भोग लगाना चाहिए और उनकी धूप व दीप से आरती करनी चाहिए।
11- इसके बाद नवमी तिथि के दिन यह सभी वस्तुएं किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।
12- इसके बाद नवमी तिथि के दिन ही मंडप का किसी पवित्र नदी में विर्सजन कर दें।
कथा
सीता नवमी की पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्मधुरीण ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम देवदत्त था। उन ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपगर्विता पत्नी थी, उसका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई।
अब तो पूरे गांव में उसके इस निंदित कर्म की चर्चाएं होने लगीं। परंतु उस दुष्टा ने गांव ही जलवा दिया। दुष्कर्मों में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ। पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी, ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ठ हो गया तथा व्यभिचार-कर्म के कारण वह अंधी भी हो गई। अपने कर्म का फल उसे भोगना ही था।
इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनों दिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश-देशांतर में भटकने लगी। एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी, जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है।
सीता (जानकी) नवमी के पावन उत्सव पर भूख-प्यास से व्याकुल वह दुखियारी इस प्रकार प्रार्थना करने लगी- हे सज्जनों! मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो। मैं भूख से मर रही हूं- ऐसा कहती हुई वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई। उसने पुनः पुकार लगाई- भैया! कोई तो मेरी मदद करो- कुछ भोजन दे दो।
इतने में एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो सीता नवमी है, भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है, इसीलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा। कल पारणा करने के समय आना, ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा, किंतु वह नहीं मानी। अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी एवं जल प्रदान किया। वह पापिनी भूख से मर गई। किंतु इसी बहाने अनजाने में उससे सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया।
अब तो परम कृपालिनी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंदपूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात् वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। जातिस्मरा उस महान साध्वी ने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई।
अत: सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन-अर्चन करते हैं, उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं। इस दिन जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम्, रामचरित मानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।